Saturday 8 August 2015

पुराने तस्वीर...

पुराने तस्वीरो में ऐसा क्या है जो जब दिख जाती हैं तो मैं ग़ौर से देखने लगता हूँ क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल ओर मासुम सा चेहरा... जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है आंखेँ जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई बिना प्रेस किए हुए कपड़े उस दौर के जब ज़िँदगी ऐसी ही सलवटोँ में लिपटी हुई थी उस तस्वीर मे मैं हूं अपने वास्तविक रुप में एवं स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिये हुए अपने ही जैसे बेफ़्रिक दोस्तों के साथ एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है और क्षण भर के लिए एक कोने में टिक गया है कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं आंखोँ में कोई लालच नहीं..!! कुछ तस्वीर कॉलेज के समय सुबह एक नुक्कड़ पर चाय पीते समय की है उसके आस पास की दुनिया भी सरल और मासूम है चाय के कप,नुक्कड़ और सुबह की ही तरह ऐसी कितनी ही तस्वीरें हैं जिन्हें मनबहलाव के लिए मैं दिखाता हूँ घर आये हुए लोगोँ को... ओर अब यह क्या है कि मैं तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूं खींचने वाले से कहता हूँ रहने दो मेरा फ़ोटो अच्छा नहीं आता.... मैं सतर्क हो जाता हूं जैसे एक आईना सामने रख दिया हो सोचता हूँ क्या यह कोई डर है कि मैँ पहले जैसा नहीं दिखूंगा क्या मेरे चेहरे पर झलक उठेगी इस दुनिया की कठोरताएं,चतुराइयां और लालच इन दिनों हर तरफ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं जिनसे लड़ने की कोशिश में... मैं कभी-कभी उन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ..

Thursday 30 July 2015

I'm Kalam...__/\__


कल एक ज्ञान और मिला कि जिनके लिए देश के पहले#जाति_ओर_धर्म होता हैं वो गुमनामी की मौत मर जाते हैं और जब तक जिन्दा रहते हैं लोगो की नफ़रतों के काबिल बने रहते हैं पर जिनके लिए #जाति_ओर_धर्म से पहले देश होता हैं उनकी मृत्यु पर सारे देश के साथ कायनात तक रो देती हैं।
आज ऐसा महसूस होता हैं जैसे कोई घर का बुजुर्ग चला गया, कोई फलदार पेड़ कट गया, हे परमपिता परमेश्वर जिन्हें आप ले गए हैं वो हमारे नाज थे, करोड़ो दिलों के नायक थे आपसे विनती हैं की उनका बेहद बेहद ख्याल रखना और जल्द से जल्द से हमारे देश की अपूरणीय क्षति जो उनकी जाने से हुई हैं फिर अपना कोई प्यारा देवदूत हमारे देश में भेज पूरी करना। ~~®®®~~
#RIP #SIR #APJAbdulKalam #miss_u
 

Wednesday 17 June 2015

बदलाव- एक कहानी

“हम शपथ लेते हैं कि हम पूर्ण पारदर्शिता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे और भ्रष्टाचार के समूल विनाश में अपना सम्पूर्ण सहयोग देंगे|” – इन शब्दों के साथ ही सतर्कता सप्ताह की प्रतिज्ञा समाप्त हुई और बड़े बड़े अधिकारी अपनी तशरीफ के साथ कमजोर कुर्सियों की बेहाल गद्दियों में धंस गए | इस प्रतिज्ञा की ध्वनि ने सभागार की खिडकियों की चूलें हिला दी थी, माहौल ऐसा गुंजायमान था कि लगता था, ऊपर से देवी-देवता पुष्पवर्षा ही करने वाले होंगे | ऐसी प्रतिज्ञा इससे पहले शायद उन्होंने स्वयं भीष्म पितामह के मुंह से ही सुनी होगी | खैर ! चाय की गर्म गर्म चुस्कियों के साथ चर्चा का विषय भी गरमाता गया | “पारदर्शी पचौरी”, “कर्तव्य परायण कपूर” और “ईमानदार ईरानीजी” ने बड़ा मन लगाकर वाद-विवाद किया | कार्यक्रम के सञ्चालक श्री “सत्यदर्शी सिंह” जी और उनके बड़े साहब श्री “सत्यान्वेषी शर्मा” जी, कार्यक्रम की भरपूर सफलता पर गदगद थे और अपने मानस पटल पर रिपोर्ट की रूप-रेखा भी तैयार कर चुके थे|
इसके साथ ही समारोह समाप्त हुआ|
“क्यों कपूर साहब? आज वो फाइल का काम कर दें ?- पचौरी जी ने पूछा |
“कौन सी ?”
“अरे वही! वो जो जिला अस्पताल के लिए जमीन खरीदनी है | पिछले कुछ दिन से कलक्टर साहब का कुछ ज्यादा ही प्रेशर आ रहा है | हमें भी तो उस फाइल को छुए अरसा बीत गया| अब तक तो उसके पन्ने भी ताम्रपत्र बन गए होंगे | पता नहीं मैंने कहाँ रख दी है, ढूंढना पड़ेगा|”
“अरे यार पारदर्शी! कुछ घर का जरूरी काम करना है| सोच रहा था, आज निपटा लेता पर तुम तो काम लेकर आ गये| ठीक है कार का बंदोबस्त कर लो तो अपना घर का काम भी मैं निपटा आऊँगा| मगर ये बताओ, ये फायदे का सौदा है कि नहीं?” कर्तव्य परायण कपूर जी ने रूचि जाग्रत कर के पूछा|
“अब वो तो इमानदार साहब ही बता पाएंगे, उन्हें ही तो करनी है ये डील फाइनल| उन्ही से ही पूछ लेते हैं| आवाज़ लगाओ उनको जरा|”
“ईमानदार साब, ईमानदार साब!”
“ आ रहा हूँ यार, तुम तो पूरे ऑफिस में धमाका करे देते हो, बताओ क्या बात है, पारदर्शी?”
“भाई साहब, मैं तो कर्तव्य परायण जी को वो डील की बात बता रहा था| कुछ प्रकाश डालिए|”
“सुनो जी, आप दोनों का सहयोग रहा तो इस जिले के लिए बहुत बड़ा अस्पताल बन सकता है, इसमें जनता का फायदा तो है ही और हम जनता के सेवकों को भी मेवा खाने का अवसर मिलेगा”- ईमानदार साहब के बोल फूटे|
कर्तव्य परायण जी का चेहरा गुलाबी हो उठा और उस गुलाब की चमक पारदर्शी जी की आँखों में भी दिखने लगी|
इन सब बातों को “अंतरात्मा आनंद” जी सुन रहे थे| वो “सत्यदर्शी” सिंह जी और उनके बड़े साहब श्री “सत्यान्वेषी” शर्मा जी के बड़े चहेते भी थे| “ये सही नहीं है”- अंतरात्मा ने आवाज़ दी|
तीनो लोग चौंक गए| पीछे मुड़कर देखा तो अंतरात्मा जी अपनी आवाज़ की पहुँच से प्रभावित हो स्वयं से बातें करने में लगे थे| तभी ये तीनो पास आ गए और ईमानदार जी बोले- “क्या गलत है? जरा विस्तार से बोलो|”
अंतरात्मा जी पहले थोडा सहमे पर खुद को सहेजकर बोले-“ यही कि आप जैसे प्रभावी, उच्च कद एवं क्षमता के अधिकारी ऐसा घिनोना कार्य करेंगे|” तब तक “नियमावली नरूला” जी भी आ गयीं, जो अंतरात्मा की बहुत पक्की सहेली थी| अंतरात्मा जी ने प्रवचन चालू रखे, “नियमावली” की उपस्थिति ने उन्हें काफी नैतिक सहारा दिया-“आप अपने परिवार के मुखिया हैं| क्या संस्कार दे पाएंगे आप अपने बच्चों को? जो आपको अपना आदर्श मान के चलते हैं| क्या मुंह दिखा पाएंगे, यदि आप पर कोई केस हो जाये? और फिर इन बेईमानी के पैसों से किसी का भला नहीं हुआ है|
“नियमों के प्रति भी जागरूकता लाने के कोशिश कीजिये साहब”- नियमावली नरूला स्वयं को रोक न पायीं|
“परमात्मा पाण्डेय”, इस कार्यालय के सर्वोच्च अधिकारी अपने सीसीटीवी कैमरे से ये सब देख रहे थे|
इन तीनों के चेहरे लटके हुए थे, पर किसी तरह साहस बटोरकर पारदर्शी पचौरी जी बोले- “पर ये तो सभी कर रहे हैं न? और हम कोई गरीबों को तो लूट नहीं रहे| वो जमीन का मालिक “धनवर्षा धवल” तो हमें स्वयं ही दे रहा है|”
अंतरात्मा बौखलाकर बोले- “हम किसी और के लालच को अपने स्वार्थ की ढाल नहीं बना सकते| आप अपने कर्तव्य का ईमानदारी एवं पारदर्शिता से निर्वहन कीजिये और निश्चय ही आप उस दुर्दांत दुर्घटना के दुष्परिणामों से बच जायेंगे जिसमे आप शायद स्वयं से भी आँखे नहीं मिला सकते|”
उनके इन शब्दों ने वाकई काफी अन्दर तक असर डाला| और उसी समय तीनों ने “अंतरात्मा” जी को “नियमावली” के सामने वचन दिया कि अपने कर्तव्यों का ईमानदारी एवं पारदर्शिता से निर्वहन करेंगे और किसी को शिकायत का मौका नहीं देंगे|
जब ये घटना सत्यदर्शी और सत्यान्वेषी जी को पता लगी तो इसकी सच्चाई को इन्होने जांचा और “परमात्मा पाण्डेय” जी को कहानी सुनाई जो सब कुछ पहले ही म्यूट सीसीटीवी पर देख चुके थे|

Friday 12 June 2015

प्रेम

प्रेम का इजहार कर भी दूंगा
और तुम स्वीकार भी कर लोगे..
तब भी बदलेगा क्या ?
जो एहसास अभी है,
वह तब भी रहेंगे,
जो साथ आज है
वह तब भी रहेगा......
बस बदलेगी शब्दावली
दोस्त से सनम, यार से जान
और यारा से बेटू हो जाओगी ?
तो क्या
शब्दावली बदलने के लिए ही
प्रेम इजहार किया जाता ?
प्रेम तो तब भी होता
जब हम दोस्त होते..
प्रेम तो अब भी है,
हम जिस रिश्ते में है...!!

Thursday 4 June 2015

सिर्फ मैगी ही क्यों?

मैगी एक के बाद एक टेस्ट फेल कर रही है...लेकिन मैगी का टेस्ट लेने में इतने साल क्यों लग गए...मैगी खाते-खाते लोग बूढ़े हो गए...फिर अब एकाएक मैगी की परीक्षा क्यों हुई...और मैगी की ही परीक्षा क्यों ली गयी???...बाजार में मैगी के अलावा किसी और खाने के सामान की परीक्षा क्यों नहीं ली जा रही है??? अमिताभ, माधुरी पर ही केस क्यों दर्ज हुआ??...केस तो उन विभागों पर भी हो जिनके ज़िम्मे खाने-पीने के सामान पर नज़र रखने की ज़िम्मेदारी है..जो मोटी मोटी सैलरी लेते हैं। केस तो उन दुकानों पर भी हो जो सालों से मैगी बेचते आ रहे है हैं...केस तो सरकार के खिलाफ भी हो जिसपर जनता की सेहत की ज़िम्मेदारी है...क्योंकि मैगी कोई अभी अभी बाजार में तो आई नहीं है सालों से बाजार में है और उपरोक्त ये सब सालों से आँख बंद किये बैठे है। अब दो सवाल, एक ये की मैगी करीब 35 साल से किसकी मंजूरी पर चल रही थी? दूसरा अब किसको मैगी से दिक्कत हुई..क्योंकि जनता के लिए कोई विभाग या सरकार सोचती है ये विश्वास कोई करेगा नहीं...तो मैगी की परीक्षा के पीछे क्या कोई बड़ा खेल है????

तीन हज़ार चार सौ करोड़ की मैगी के बुरे दिन शुरू हो गये लगता है।लेकिन सिर्फ मैगी ही क्यों? पेप्सी, कोका कोला, मैडोनाल्डस, केएफसी, पिज़्ज़ा हट सब स्वास्थ के लिए खतरनाक चीज़े बेचते है।
गली मुहल्ले में खुले चाइनीज़ कॉर्नर धड़ल्ले से अजीनो मोटो (जिसे स्वास्थ के लिये घातक बताया बतया गया है), नकली टोमेटो केचप, बीमार या मरे हुए मुर्गे, नकली पनीर, घातक रासायनिक रंग जिससे चिकन, पनीर और मंचूरियन को आकर्षक बनाया जाता है का इस्तेमाल करते है।
खुले में मिलने वाले सारे मसाले लगभग मिलावटी है।लाल मिर्च पाउडर , हल्दी में रंग काली मिर्च में पपीते का बीज।देशी घी में पशु की चर्बी, कीटनाशक युक्त अनाज और सब्ज़ियाँ इत्यादि एक लंबी श्रृंखला है। हम जिसे मज़बूरी में जानते बूझते खा रहे है।
क्या इसके लिये सरकार गंभीर है? बिलकुल नहीं सैंपलिंग विभाग आता है दुकानों से अपना बंधा हुआ कमीशन( हफ्ता या महीना) ले कर चल देता है।असली खिलाड़ी मज़े करते है।
नेस्ले हाई प्रोफाइल मामला होने के कारण बलि का बकरा बनेगा।हो सकता है कोई बड़ा और नया खिलाड़ी मैदान में आने की तैयारी कर रहा हो।

Sunday 31 May 2015

मेरे सपने और उसमे मैं.....

नहीं पता होता हमें अक्सर की हमें क्या चाहिए ? मुझे ये भी चाहिए और वो भी चाहिए। ये चाहिए तो ठीक ऐसे चाहिए और वो वाला ठीक वैसे। वक़्त की ज़ेब में कोई कर्ज़ नहीं चाहिए बल्कि मुस्कुराहटें चाहिए बेहिसाब जो ज़ेब में छलक कर जूतों की हील पर भी निशान छोड़ जाए I कुछ इस तरह छलके की सड़क पर मेरे पीछे पीछे एक लम्बी लाइन बनती आये और उस लाइन को टटोलते हुए पीछे पीछे सब। मुझे कुरान को पढ़ना है और मिल्टन को जानना है। मुनरो की बायोग्राफी तो हिटलर के खौफनाक कृत्य। स्वर्ग का दरवाजा जिसकी चाबी मुझसे कहीं ग़ुम हो गई था और वो लड़की जो हर रोज मुझे देखती थी और पता चला की उसकी शादी किसी ओर से हो गयी। कितने ही बेफिजूल सवाल और मैं। कही पेड़ पर लैपटॉप लेकर पैर नीचे लटकाकर बैठना और आसमान की और लपकती डाली से कच्चा हरा रंग आँखों पर उतार लेना। इन्द्रधनुष के कोने से रंग निचोड़कर दिल में भर लेना और जाती हवा से सागर की बूंदें मंगवा कर यूं छींटे बिखेर देना। कितने ही सपने और उनमे कितना ही मैं....!!

Thursday 28 May 2015

यारी

जब मिले तुम्हे ये इल्म न था
इतने अज़ीम हो जाओगे
फिर जाओगे दे दर्दे दिल
के भी मुफीद ना आओगे
जो वक़्त गुज़ारा संग तेरे
सब स्वप्न सरीखे लगते हैं
सुख दुःख जो बांटे थे हमने
अब दूर सरकते दिखते हैं
हम दूर बहुत होंगे फिर भी
तुझको ना जाने देंगे दूर
तुम दिल में हमारे बसते हो
साँसों में है यारी का नूर
हँसते ही रहो और सदा सुखी
बस यही कामना मेरी है
हम यही खड़े इंतज़ार में
तेरे बिन यारी ये अधूरी है

Saturday 25 April 2015

किसान




मीडिया ,राजनेताओ में बहुत दिनों से देख रहा हुँ , वो किसानो के प्रति बहुत सहानुभूति रखते है | वो पहले लैंड बिल को लेके आक्रोशित हुए और काफी कार्यक्रम किये | खूब जताने का प्रयास किया की किसानो के साथ कितनी बड़ी बड़ी विडम्बनाएं है  | उनकी मिनटो की लम्बी प्रस्तावनाये सुन सुन कर में भी थोड़ा लैंड बिल को लेके कंफ्यूज हो गया था | और विश्वास आने लगा की ये बिल तो वाकई में हमारे कृषि प्रधान देश के लिए एक विडम्बना है |

किसी की भी ज़मीन या घर को छीनना बहुत ही भावुक मामला हो सकता है | ये आखिर  कहा का न्याय हो सकता है की किसी हँसते खेलते किसान की खेती वाली ज़मीन को उद्योग के नाम पर ले लेना |

फिर कुछ दिनों बाद असमय बारिश और ओले की त्रासदी से किसानो के हुए नुक्सान को भी मीडिया ने बहुत ही गंभीरता और बेचैनी से अपने शो में प्रसारित किया | वास्तविकता में वो बधाई के पात्र है की प्राइम टाइम में भी किसानो के विषय उठाते है | क्युकी जब किसान और सीमा पे जवान मरता है तो शहरो में एक भी मोमबत्ती नहीं जलती |  हम जैसे शहरी लोगो को कोई फर्क नही पड़ता क्युकी हम तो अनाज निर्यात करके भी अपना पेट भर लेंगे | पर वो किसान बेचारे जिनकी पूँजी वो फसल ही थी , उसके हाथ तो कुछ नही लगा | वो तो एक ‘Mythological character’ इंद्र देव की लापरवाही के चक्कर में निपट गया | सैकड़ो किसानो ने तो आत्महत्या तक कर ली , कारण ? क्युकी उनके पास कमाई का और कोई ओर जरिया ही नहीं था |
दरअसल मुझे इस घटना से एक नयी दिशा मिली किसानो के प्रति सोचने की | क्या हम इतनी स्वार्थी हो गए है की किसान को केवल अनाज उगाने के काम तक ही सीमित रखना चाहते , जिससे हमारा पेट भरता रहे |
अब ज़रा कल्पना करके देखो यदि उस किसान के घर में कम से कम यदि १ व्यक्ति भी किसी दूसरी फैक्ट्री में लगा होता या कुछ और धंधा कर रहा होता तो उस घर में आत्महत्या होती क्या ? कितनी भी फसल बर्बाद हो जाती पर किसान मरने की नहीं सोचता यदि उसके पास आय का कोई दूसरा स्त्रोत भी होता |  कोई किसान का दुश्मन ही होगा जो ये चाहेगा की किसान १००% रूप से बारिश की मेहरबानी पर ही अपने जीवन की दशा तय करे | बारिश हुई तो ठीक नहीं तो वो भिखारी जैसी ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर हो जाए |
ज़रा कल्पना कीजिये , हर बड़े गाव के आसपास एक बड़ी – छोटी उद्योग / कारखाना भी हो | परिवार के कुछ लोग खेती भी करे अपनी ज़मीन पर और कुछ लोग अपने कौशल के अनुसार गाव के पास ही नौकरी भी करे |  मुझे लगता है यदि आप थोड़ा भी निःस्वार्थ भाव से किसान के लिए सोचते हो , तो आप चाहोगे की वो केवल आपके लिए अन्न पैदा करता ही न रह जाए | उसके घर में एक बैकअप सोर्स ऑफ़ इनकम भी हो | और वो तभी संभव है जब किसान के घर के पास कम से कम १ फैक्ट्री हो | नौकरी के लिए किसान को मुंबई दिल्ली के फूटपाथ पे सोने की ज़रुरत नहीं होनी चाहिए | वो फैक्ट्री इतनी पास में हो की वो शाम को वापस घर जाके अपने ही घर में सो भी सके |  हाँ कुछ किसानो की जमीन जाएगी इस नियम से पर मुझे इसमे किसानो का हित दिख रहा है | इतनी उम्मीद तो दिखती है की  कम से कम १०० में से ९५ किसानो को तो रोका जा सकता है आत्म-हत्या करने से | यदि इतना भी कर सके तो बहुत बड़ी सेवा होगी किसानो की |
यदि उन बचे हुए ५% किसानो के नुक्सान को भी काम किया जा सकते है तो उसको भी ज़रूर सोचना चाहिए | पर ऐसा भी नहीं होना चाहिए की ५% की नाराज़गी के डर से ९५% किसानो का हित न देखा जाए | यदि ऐसा हुआ तो ये सच में बहुत बड़ी विडम्बना होगी |

Thursday 23 April 2015

"MOON"



As i look at the moon,
And admire its beauty,
I realize even the moon has flaws,
Yet its known for its purity.
Just like the human has scars incurred,
Those if untold sacrifices,
Sone of the unsaid pain,
And some nurtured by god itself.
thanks....
         #‎ps_h‬♡

Wednesday 22 April 2015

"Somedays"


Somedays you break.
Somedays you lose self confidence.
Somedays you have no inner surface.
Somedays you see your world falling apart.
Somedays you just don't feel like the real you.
Because people leave you all alone to suffer.
Because not everybody turns into what they say.
Because its not easy to put up with her tantrums
Because its a matter of time that he would finally understand her.
May be for good, or bad. :')
Thanks..
           ‪#‎ps_h‬♡

Sunday 19 April 2015

"SECRECY"


My affair not to be disturbed,
My seclusion privacy enclosed;
I'm bound to the shackles of secrecy,
I'm invisible to your gleeful tales.

See through me, you'll find nothing,
I conceal my anecdote with veil;
Crawl to me, beg to differ,
I bear no empathy, I'm sadism.

Cherish me, be mine,
I'll forsake you soon;
I'm the solitude, get away,
Love me and you lose.



Monday 13 April 2015

जात-पात


क्या होगी पेड़ों की जात,
कभी सोचा है आपने,
सवाल अटपटा है,
लेकिन क्यों नही बांटा
उसे हमने जात-पात में,

चलो एक एक करके,बांटते हैं पेड़ों को,
फल वाले पेड़ और फूल वाले पेड़,
बड़ी-बड़ी भुजाओं वाले,
छोटी-छोटी टहनीयों वाले पेड़,

वो आम का पेड़,
जो हवन में जलता हैं,
बाभन होगा,
क्योंकि उसके पत्तों की पूजा भी होती हैं,
फल भी खुब रसीला मंत्रो की तरह,

बबूल का पेड़ छाया नही देता,
उसके कांटें चुभ जाए तो दर्द होता है,
और खुन निकलता है,
लेकिन बड़ा मजबूत होता है,
बबूल शायद ठाकुर होगा,

बनिया तो महुआ होगा,
उसके पत्तों से पत्तल बनती हैं,
रसीले फल आंटे में
मीजकर गुजीया बनाते हैं,
सुखाकर उसके फल दुकान पर बेच देते हैं,
तेल भी मिलता है महुए की कोईय्या से,
लकड़ी तो उसकी बड़े काम आती हैं,

कुछ पेड़ है,
जो जल्दी जल्दी बढ़ते है,
उनकी लकड़ी जलावन बनती हैं,
अमलतास मेरा हरिजन होगा,
बस बढ़ता है और कटता है,
उसके कटने पर किसी को दु:ख नही होता,

सवाल मेरा पढ़कर,
सोचोगे तुम, 
पागल हो गया ये लड़का
बहकी-बहकी सी बातें करता है,
तो क्यो नही सोचते,
इंसानो को जात-पात में बांटने पर,

चलो एक एक करके,
बांटते हैं पेड़ों को,


Sunday 12 April 2015

मेरे सपनो का राजा……

एक अजीब सी कहानी है,एक लड़का है……अपने माता-पिता का दुलारा है!! बचपन कि दिवार लांघ  कर वो जब जवान होता है तब अपने माता पिता के सपनों कि रथ पर सवार होकर निकल पड़ता है अपनी मंजिल कि तरफ़…बहुत खुश है वो. बहुत तेज चलता है पर संभल के चलता है और आपने रास्ते से भटकता नहीं है.
अब मंजिल बहुत करीब दिखती है। दिल में जीत कि फुहार उठतीं है पर अचानक रथ का पहिया टूट जाता है। लड़का जमीन पर गिरता है | उसका सर फुट जाता है उसका एक पैर टूट जाता है। मंजिल सामने है, पर अब वो चल नहीं सकता। रेंग रहा है पर ज्यादा रेंग नहीं सकता, वो चिल्लाता है रोता है पर कुछ कर नहीं पाता है। वो खुद के ठीक होने का अब इँतजार भी नहीं कर सकता। क्योंकि जिस रथ पर वो सवार था उसे बनाने के लिये उसके माता-पिता अपनी सारी कमाई खर्च कर चुके थे, सारे जमीने बेच चुके थे।
अब लड़के को मंजिल दुर होता प्रतीत होता है। दूर होते होते मंजिल गायब हो जाता है। लड़के को अपने माता पिता कि बाते याद आती है कि……
''अब लौटना तो जीत कर लौटना,अपनी मंजिल को पा कर लौटना।''

इतने में मुझे कुछ आहट सी होती  है, मेरी नींद खुलती है. मैं  शायद  सपनों मे खोया था , पर आँख खुलने तक मै बहुत रोया था। पर रोया क्योँ ? क्या उस लड़के को मैं पहचानता था मै ? कौन था वो कहीं मै ही तो नही था या आपमे से  कोइ एक था. मर चुका है मेरे सपनों मे वो पर अभी भी उसे ढूँढ  रहा हूँ मै.…………………। 


Thursday 9 April 2015

Is that okay with you?...


अभी बदला नही हूँ मैं....

मुश्किलें जरुर है मगर ठहरा नही हूँ मैं.
मंज़िल से जरा कह दो अभी पहुंचा नही हूँ मैं.

कदमो को बाँध न पाएंगी मुसीबत कि जंजीरें,
रास्तों से जरा कह दो अभी भटका नही हूँ मैं.

सब्र का बाँध टूटेगा तो फ़ना कर के रख दूंगा,
दुश्मन से जरा कह दो अभी गरजा नही हूँ मैं.

दिल में छुपा के रखी है लड़कपन कि चाहतें,
दोस्तों से जरा कह दो अभी बदला नही हूँ मैं.

साथ चलता है, दुआओ का काफिला,
किस्मत से जरा कह दो अभी तनहा नही हूँ मैं.


Wednesday 8 April 2015

जीवन होगा हर्ष भरा.....




सूरज है निस्तेज पड़ा
बादल इसके पास खड़ा,
अपने पथ पर बढ़ता सूरज
ना है कोई मद भरा.

दुःख हैं थोड़े बादल जैसे
छंट जायेंगे गम न कर,
अड़ियल बादल हट जाएंगे
दिन निकलेगा धूप भरा.

मत घबराना थोड़े दुःख से
जीवन होगा हर्ष भरा.

Friday 27 March 2015

भारत रत्न : अटल बिहारी वाजपेयी……




"भारत रत्न : अटल बिहारी वाजपेयी" _/\_
************************************

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

Friday 20 March 2015

The reason is you...

From that wonderfully brilliant song ....

I'm sorry that I hurt you
It's something I must live with everyday
And all the pain I put you through
I wish that I could take it all away
And be the one who catches all your tears
Thats why I need you to hear

I've found a reason for me
To change who I used to be
A reason to start over new
and the reason is You
                                        unknown


i am confused....


I want more hair on my head but I do not want any facial hair
I want to live at my home and yet I want to be alone
I want roads to be empty and still be able to make people jealous
I want to get settled and yet I don’t want to commit
I want more money than I can ever spend and yet more time to do things
I want followers and yet I want to be left alone
I want to live on a mountain and yet not far from the beach
I want to have more wants and cant really think of more
I am confused and yet I am so clear... 
                                                   


Thursday 19 March 2015

जागरूक बने……


फिर से आपको बहुत बहुत शुक्रिया……

Wednesday 18 March 2015

REAL and VIRTUAL





“LOL” She says you know….
Because Laughing out a loud is so outdated
and every time someone likes her post
she is so elated…
don’t give her food, she will manage
take away her phone, she dies
Tell her she has cancer,she is okay with it.
Tell her the internet is not working
and watch how she cries.
I am going to the washroom, she tells her mother
but why are you so dressed, may I ask?
Oh!! Mom, I need a new profile picture
and you know it’s such an exhausting task
Washroom to take picture I know it sound crazy,
But that’s what the realty is...
And this is what we have come to know,  
the days that were, I truly miss..
Just click on a button and you are a friend...  
Click and you are not…
But is not friendship a lot more than that  
Well that is what I have been taught
I think it is time, we live is the real world
And enjoy all that it brings,
Cause there is more to life then the virtual world..
There is more to life than pretty things...
                                    Pragya Singh
                  “The new poet of the new era” & my dear friend

लङकिया शिक्षित होंगी तो सबका भला होगा………

हिन्दुस्तान युवा समाचर पत्र को मेरी तरफ से बहुत बहुत शुक्रिया जिसने मेरे विचारो को इस काबिल समझा…………

Tuesday 10 March 2015

'India's daughter'




फिल्म 'India's daughter' को लेकर सोशल कार्यकर्ताएं बहुत हाइपर हो रही हैं ! मैंने पूरी फिल्म देखी ! ऐसा कुछ भी नहीं है इस फिल्म में जो बलात्कारियों के लिए हमारे मन में दया या करुणा उपजाये या उनका महिमा मंडन करे ! मुकेश नामक अपराधी के सख्त और संवेदनहीन चेहरे को देख कर घृणा और गुस्सा ही उपजता है ! वह एक बे पढ़ा लिखा अपराधी है जो जेल की सलाखों के पीछे है !

जो पढ़े लिखे, कानून विद् सलाखों से बाहर रहकर उसी की भाषा बोल रहे हैं, वे ज़्यादा खतरनाक हैं ! सजा तय करने वाले खुद सज़ा पाने के लायक हैं ! उनका कब नोटिस लिया जायेगा और उनकी मानसिकता बदलने के लिए क्या किया जाना चाहिए , यह सोचने की ज़रूरत है !
ए पी सिंह और एम एल शर्मा जैसे न्यायविद लड़कियों के लिए जैसी भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं, सज़ा तो उन्हें मिलनी चाहिए ! ये दोनों अकेले नहीं हैं ! ऐसे जस्टिस और वकील भरे पड़े हैं !

ए पी सिंह और एम एल शर्मा की जड़ सोच और मानसिकता के बरक्स ज्योति सिंह के माँ और पिता हैं जो उसी दकियानूसी परंपरा से आये हैं पर बदलाव को समझ पा रहे हैं जो सवाल कर रहे हैं कि उनकी बेटी का रात को आठ बजे लौटना इतना बड़ा गुनाह हो गया और उन लड़कों का कोई दोष नहीं जिनकी हैवानियत जहाँ तक पहुंची उसकी कल्पना भी भयानक है। उसे बताते हुए एक बलात्कारी इतना निर्लिप्त और इतना निर्भीक कैसे हो गया ? उसके सख्त और आश्वस्त चेहरे के पीछे की दुरभिसंधियों को पहचानने की ज़रूरत है !   मुझे ख़ुशी है कि बार काउंसिल ऑफ़ इण्डिया ( BCI ) ने आरोपी पक्ष के दोनों वकीलों - ए पी सिंह और एम एल शर्मा के खिलाफ गैर ज़िम्मेदार और अमर्यादित टिप्पणियाँ करने के लिए कल ''कारण बताओ नोटिस'' जारी कर दिया गया ! अब इंतज़ार है - इन दोनों बीमार सोच वाले वकीलों का लाइसेंस रद्द कर दिए जाने का ! अगर ऐसा होता है तो यह हमारे पक्ष में एक बड़ी जीत होगी !


फिल्म निर्माता को तिहाड़ जेल में जाने की अनुमति क्यों दी गयी जब मामला विचाराधीन था , वह एक अलग मुद्दा है ! इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर बहुत अक्लमंदी का परिचय नहीं दिया गया है !

फिल्म जिन सवालों को उठाती है, उन पर बगैर किसी पूर्वाग्रह के बात होनी चाहिए और बलात्कारियों को सही और ज़रूरी सज़ा दिलवाने के हथियार के रूप में ही इस फिल्म को देखा जाना चाहिए !
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Sunday 8 March 2015

महिला दिवस है, नारी शक्ति का दिन है ,क्या सिर्फ एक दिन……………??






आज महिला दिवस है, नारी शक्ति का दिन है, शक्ति जो दुनिया को आप में दिखाई देती है, 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस न जाने कितने मंचों पर आयोजित होगा, परिसंवाद, गोष्ठियाँ, चिंतन और विमर्श होंगे।

किंतु नारी से जुड़ा सच इतना तीखा और मर्मांतक है कि संवेदना की कोमल त्वचा पर सूई की नोंक सा चुभता है। वैसे नारी से जुड़े प्रश्नों को उठाने की कोशिश करनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि उससे संबंधित प्रश्न तो ऐसे हैं जो स्वत: ही सतह पर आ जाते हैं, लेकिन हमारी मानसिक सुन्नता और वैचारिक सुप्तता इस हद तक बढ़ चुकी है कि बलात्कार जैसी भयावक घटना भी हम उससे नहीं बल्कि धर्म से जोड़कर देखते हैं।


बलात्कार एक हृदय विदारक मुद्‍दा है, जिसे लेकर चिंतित सभी हैं - सरकार, समाज, संस्थाएँ और संगठन, लेकिन परिणाम, स्थिति और वास्तविकता आज भी वही है, जैसे पहले थे बल्कि पहले से और बढ़े हैं और ज्यादा विकृत हुए हैं।

जहाँ एक ओर ग्रामीण क्षेत्रों में पीड़ित महिलाएँ कुएँ में छलाँग लगा देती हैं, वहीं शहरी क्षेत्रों में घुट-घुटकर जीने को विवश कर दी जाती हैं। यदि ग्रामीण क्षेत्र में पीड़िता मुँह खोलती है तो डायन करार देकर पत्थरों से पीट-पीटकर मार डाली जाती है और शहरी क्षेत्रों में मुँह खोलती है तो तंदूर, मगरमच्छ, आग, पानी, तेजाब जैसे अनेक उपाय हैं उसका मुँह बंद करने के लिए।


मैं यह नहीं कहता कि नारी उपलब्धियाँ नगण्य हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इनके समक्ष नारी अत्याचार की रेखा समाज ने इतनी लंबी खींच दी है कि उपलब्धि रेखा छोटी प्रतीत होती है। समय अब भी ठहर कर सोचने का, समझने और महसूसने का है। क्योंकि सामाजिक व्यवस्था की बुनियाद उसी नारी पर आधारित है और जब कोई व्यवस्था अपनी चरम दुरावस्था में पहुँचती है तो उसके विनाश की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

बेहतर होगा कि महाविनाश की पृष्ठभूमि तैयार करने के बजाय सुगठित-समन्वित और सुस्थिर समाज के नवनिर्माण का सम्मिलित संकल्प करें?



Everything has beauty, but not everyone sees it. ~~®®®™~~


Sunday 1 March 2015

बहुत दूर, बहुत दूर


तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला,
मैं बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर चला.

इस क़दर दूर हूँ मैं लौट के भी आ न सकूँ,
ऐसी मंज़िल कि जहाँ खुद को भी मैं पा न सकूँ,
और मजबूरी है क्या इतना भी बतला न सकूँ.

आँख भर आयी अगर अश्क़ों को मैं पी लूँगा,
आह निकली जो कभी होंठों को मैं सी लूँगा,
तुझसे वादा है किया इस लिये मैं जी लूँगा.

खुश रहे तू है जहां ले जा दुआएं मेरी,
तेरी राहों से जुदा हो गयी राहें मेरी,
कुछ नहीं पास मेरे बस हैं खताएं मेरी.

तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला,
मैं बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर चला...

Wednesday 25 February 2015

सामाजिक जवाबदेही


शरीर के निजी अंगो से लेकर बेहूदा गलियां और व्यक्तिगत जीवन पर भद्दी टिप्पणियां इस शो की खास बात थी। एआईबी नॉकआउट शो की आजकल इसी वजह से काफी चर्चा हो रही है। जिन लोगों ने भी करण को स्टेज पर बोलते हुए सुना है उन्हें बुद्धिमान ही समझेगा यही वजह है कि करण का इससे जुड़ा होना हैरानी पैदा करता है। जब चारो ओर इस शो की आलोचना शुरू हुई तो उन्होंने ट्वीट किया 'डोंट ड्रिंक इट्स नॉट योर कप ऑफ टी। ...... यहाँ एक प्रश्न महत्वपूर्ण है कि क्या जो लोग समाज में आइकन के तौर पर देखे जाते हैं क्या उनकी समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है ? क्या उन लोगों के प्रति ऐसे लोग जवाबदेह नहीं हैं जो उन्हें देख सुनकर उनके जैसा बनना चाहते हैं। क्या ऐसी भाषा बोलने वाले लोग अपने बच्चों के मुँह से ऐसी बेहूदा गलियां और मजाक सुनना पसंद करेंगे । इसलिये कुछ लोग समाज के प्रति जिम्मेदारी महसूस करते हैं यही वजह है कि अमिताभ बच्चन सिगरेट या शराब का विज्ञापन नहीं करतें हैं। सामाजिक जवाबदेही का एक और बढ़िया उदहारण फिल्म अभिनेत्री कंगना का गोरेपन की क्रीम के लिए विज्ञापन करने से इंकार करना है। कंगना इन दिनों एक सशक्त अभिनेत्री के तौर पर उभरी हैं ऐसे में उनका सोचना सही है कि एक स्त्री को गोरा होना कतई जरूरी नहीं है। स्त्री सिर्फ शरीर नहीं है कि उसे रंग रूप तक सीमित करके देखा जाए। 
      "फिर कभी लेकिन अधुरी हें "     जारी हैं।……