Saturday 8 August 2015

पुराने तस्वीर...

पुराने तस्वीरो में ऐसा क्या है जो जब दिख जाती हैं तो मैं ग़ौर से देखने लगता हूँ क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल ओर मासुम सा चेहरा... जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है आंखेँ जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई बिना प्रेस किए हुए कपड़े उस दौर के जब ज़िँदगी ऐसी ही सलवटोँ में लिपटी हुई थी उस तस्वीर मे मैं हूं अपने वास्तविक रुप में एवं स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिये हुए अपने ही जैसे बेफ़्रिक दोस्तों के साथ एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है और क्षण भर के लिए एक कोने में टिक गया है कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं आंखोँ में कोई लालच नहीं..!! कुछ तस्वीर कॉलेज के समय सुबह एक नुक्कड़ पर चाय पीते समय की है उसके आस पास की दुनिया भी सरल और मासूम है चाय के कप,नुक्कड़ और सुबह की ही तरह ऐसी कितनी ही तस्वीरें हैं जिन्हें मनबहलाव के लिए मैं दिखाता हूँ घर आये हुए लोगोँ को... ओर अब यह क्या है कि मैं तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूं खींचने वाले से कहता हूँ रहने दो मेरा फ़ोटो अच्छा नहीं आता.... मैं सतर्क हो जाता हूं जैसे एक आईना सामने रख दिया हो सोचता हूँ क्या यह कोई डर है कि मैँ पहले जैसा नहीं दिखूंगा क्या मेरे चेहरे पर झलक उठेगी इस दुनिया की कठोरताएं,चतुराइयां और लालच इन दिनों हर तरफ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं जिनसे लड़ने की कोशिश में... मैं कभी-कभी उन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ..