Sunday 31 May 2015

मेरे सपने और उसमे मैं.....

नहीं पता होता हमें अक्सर की हमें क्या चाहिए ? मुझे ये भी चाहिए और वो भी चाहिए। ये चाहिए तो ठीक ऐसे चाहिए और वो वाला ठीक वैसे। वक़्त की ज़ेब में कोई कर्ज़ नहीं चाहिए बल्कि मुस्कुराहटें चाहिए बेहिसाब जो ज़ेब में छलक कर जूतों की हील पर भी निशान छोड़ जाए I कुछ इस तरह छलके की सड़क पर मेरे पीछे पीछे एक लम्बी लाइन बनती आये और उस लाइन को टटोलते हुए पीछे पीछे सब। मुझे कुरान को पढ़ना है और मिल्टन को जानना है। मुनरो की बायोग्राफी तो हिटलर के खौफनाक कृत्य। स्वर्ग का दरवाजा जिसकी चाबी मुझसे कहीं ग़ुम हो गई था और वो लड़की जो हर रोज मुझे देखती थी और पता चला की उसकी शादी किसी ओर से हो गयी। कितने ही बेफिजूल सवाल और मैं। कही पेड़ पर लैपटॉप लेकर पैर नीचे लटकाकर बैठना और आसमान की और लपकती डाली से कच्चा हरा रंग आँखों पर उतार लेना। इन्द्रधनुष के कोने से रंग निचोड़कर दिल में भर लेना और जाती हवा से सागर की बूंदें मंगवा कर यूं छींटे बिखेर देना। कितने ही सपने और उनमे कितना ही मैं....!!

Thursday 28 May 2015

यारी

जब मिले तुम्हे ये इल्म न था
इतने अज़ीम हो जाओगे
फिर जाओगे दे दर्दे दिल
के भी मुफीद ना आओगे
जो वक़्त गुज़ारा संग तेरे
सब स्वप्न सरीखे लगते हैं
सुख दुःख जो बांटे थे हमने
अब दूर सरकते दिखते हैं
हम दूर बहुत होंगे फिर भी
तुझको ना जाने देंगे दूर
तुम दिल में हमारे बसते हो
साँसों में है यारी का नूर
हँसते ही रहो और सदा सुखी
बस यही कामना मेरी है
हम यही खड़े इंतज़ार में
तेरे बिन यारी ये अधूरी है