Saturday 25 April 2015

किसान




मीडिया ,राजनेताओ में बहुत दिनों से देख रहा हुँ , वो किसानो के प्रति बहुत सहानुभूति रखते है | वो पहले लैंड बिल को लेके आक्रोशित हुए और काफी कार्यक्रम किये | खूब जताने का प्रयास किया की किसानो के साथ कितनी बड़ी बड़ी विडम्बनाएं है  | उनकी मिनटो की लम्बी प्रस्तावनाये सुन सुन कर में भी थोड़ा लैंड बिल को लेके कंफ्यूज हो गया था | और विश्वास आने लगा की ये बिल तो वाकई में हमारे कृषि प्रधान देश के लिए एक विडम्बना है |

किसी की भी ज़मीन या घर को छीनना बहुत ही भावुक मामला हो सकता है | ये आखिर  कहा का न्याय हो सकता है की किसी हँसते खेलते किसान की खेती वाली ज़मीन को उद्योग के नाम पर ले लेना |

फिर कुछ दिनों बाद असमय बारिश और ओले की त्रासदी से किसानो के हुए नुक्सान को भी मीडिया ने बहुत ही गंभीरता और बेचैनी से अपने शो में प्रसारित किया | वास्तविकता में वो बधाई के पात्र है की प्राइम टाइम में भी किसानो के विषय उठाते है | क्युकी जब किसान और सीमा पे जवान मरता है तो शहरो में एक भी मोमबत्ती नहीं जलती |  हम जैसे शहरी लोगो को कोई फर्क नही पड़ता क्युकी हम तो अनाज निर्यात करके भी अपना पेट भर लेंगे | पर वो किसान बेचारे जिनकी पूँजी वो फसल ही थी , उसके हाथ तो कुछ नही लगा | वो तो एक ‘Mythological character’ इंद्र देव की लापरवाही के चक्कर में निपट गया | सैकड़ो किसानो ने तो आत्महत्या तक कर ली , कारण ? क्युकी उनके पास कमाई का और कोई ओर जरिया ही नहीं था |
दरअसल मुझे इस घटना से एक नयी दिशा मिली किसानो के प्रति सोचने की | क्या हम इतनी स्वार्थी हो गए है की किसान को केवल अनाज उगाने के काम तक ही सीमित रखना चाहते , जिससे हमारा पेट भरता रहे |
अब ज़रा कल्पना करके देखो यदि उस किसान के घर में कम से कम यदि १ व्यक्ति भी किसी दूसरी फैक्ट्री में लगा होता या कुछ और धंधा कर रहा होता तो उस घर में आत्महत्या होती क्या ? कितनी भी फसल बर्बाद हो जाती पर किसान मरने की नहीं सोचता यदि उसके पास आय का कोई दूसरा स्त्रोत भी होता |  कोई किसान का दुश्मन ही होगा जो ये चाहेगा की किसान १००% रूप से बारिश की मेहरबानी पर ही अपने जीवन की दशा तय करे | बारिश हुई तो ठीक नहीं तो वो भिखारी जैसी ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर हो जाए |
ज़रा कल्पना कीजिये , हर बड़े गाव के आसपास एक बड़ी – छोटी उद्योग / कारखाना भी हो | परिवार के कुछ लोग खेती भी करे अपनी ज़मीन पर और कुछ लोग अपने कौशल के अनुसार गाव के पास ही नौकरी भी करे |  मुझे लगता है यदि आप थोड़ा भी निःस्वार्थ भाव से किसान के लिए सोचते हो , तो आप चाहोगे की वो केवल आपके लिए अन्न पैदा करता ही न रह जाए | उसके घर में एक बैकअप सोर्स ऑफ़ इनकम भी हो | और वो तभी संभव है जब किसान के घर के पास कम से कम १ फैक्ट्री हो | नौकरी के लिए किसान को मुंबई दिल्ली के फूटपाथ पे सोने की ज़रुरत नहीं होनी चाहिए | वो फैक्ट्री इतनी पास में हो की वो शाम को वापस घर जाके अपने ही घर में सो भी सके |  हाँ कुछ किसानो की जमीन जाएगी इस नियम से पर मुझे इसमे किसानो का हित दिख रहा है | इतनी उम्मीद तो दिखती है की  कम से कम १०० में से ९५ किसानो को तो रोका जा सकता है आत्म-हत्या करने से | यदि इतना भी कर सके तो बहुत बड़ी सेवा होगी किसानो की |
यदि उन बचे हुए ५% किसानो के नुक्सान को भी काम किया जा सकते है तो उसको भी ज़रूर सोचना चाहिए | पर ऐसा भी नहीं होना चाहिए की ५% की नाराज़गी के डर से ९५% किसानो का हित न देखा जाए | यदि ऐसा हुआ तो ये सच में बहुत बड़ी विडम्बना होगी |

Thursday 23 April 2015

"MOON"



As i look at the moon,
And admire its beauty,
I realize even the moon has flaws,
Yet its known for its purity.
Just like the human has scars incurred,
Those if untold sacrifices,
Sone of the unsaid pain,
And some nurtured by god itself.
thanks....
         #‎ps_h‬♡

Wednesday 22 April 2015

"Somedays"


Somedays you break.
Somedays you lose self confidence.
Somedays you have no inner surface.
Somedays you see your world falling apart.
Somedays you just don't feel like the real you.
Because people leave you all alone to suffer.
Because not everybody turns into what they say.
Because its not easy to put up with her tantrums
Because its a matter of time that he would finally understand her.
May be for good, or bad. :')
Thanks..
           ‪#‎ps_h‬♡

Sunday 19 April 2015

"SECRECY"


My affair not to be disturbed,
My seclusion privacy enclosed;
I'm bound to the shackles of secrecy,
I'm invisible to your gleeful tales.

See through me, you'll find nothing,
I conceal my anecdote with veil;
Crawl to me, beg to differ,
I bear no empathy, I'm sadism.

Cherish me, be mine,
I'll forsake you soon;
I'm the solitude, get away,
Love me and you lose.



Monday 13 April 2015

जात-पात


क्या होगी पेड़ों की जात,
कभी सोचा है आपने,
सवाल अटपटा है,
लेकिन क्यों नही बांटा
उसे हमने जात-पात में,

चलो एक एक करके,बांटते हैं पेड़ों को,
फल वाले पेड़ और फूल वाले पेड़,
बड़ी-बड़ी भुजाओं वाले,
छोटी-छोटी टहनीयों वाले पेड़,

वो आम का पेड़,
जो हवन में जलता हैं,
बाभन होगा,
क्योंकि उसके पत्तों की पूजा भी होती हैं,
फल भी खुब रसीला मंत्रो की तरह,

बबूल का पेड़ छाया नही देता,
उसके कांटें चुभ जाए तो दर्द होता है,
और खुन निकलता है,
लेकिन बड़ा मजबूत होता है,
बबूल शायद ठाकुर होगा,

बनिया तो महुआ होगा,
उसके पत्तों से पत्तल बनती हैं,
रसीले फल आंटे में
मीजकर गुजीया बनाते हैं,
सुखाकर उसके फल दुकान पर बेच देते हैं,
तेल भी मिलता है महुए की कोईय्या से,
लकड़ी तो उसकी बड़े काम आती हैं,

कुछ पेड़ है,
जो जल्दी जल्दी बढ़ते है,
उनकी लकड़ी जलावन बनती हैं,
अमलतास मेरा हरिजन होगा,
बस बढ़ता है और कटता है,
उसके कटने पर किसी को दु:ख नही होता,

सवाल मेरा पढ़कर,
सोचोगे तुम, 
पागल हो गया ये लड़का
बहकी-बहकी सी बातें करता है,
तो क्यो नही सोचते,
इंसानो को जात-पात में बांटने पर,

चलो एक एक करके,
बांटते हैं पेड़ों को,


Sunday 12 April 2015

मेरे सपनो का राजा……

एक अजीब सी कहानी है,एक लड़का है……अपने माता-पिता का दुलारा है!! बचपन कि दिवार लांघ  कर वो जब जवान होता है तब अपने माता पिता के सपनों कि रथ पर सवार होकर निकल पड़ता है अपनी मंजिल कि तरफ़…बहुत खुश है वो. बहुत तेज चलता है पर संभल के चलता है और आपने रास्ते से भटकता नहीं है.
अब मंजिल बहुत करीब दिखती है। दिल में जीत कि फुहार उठतीं है पर अचानक रथ का पहिया टूट जाता है। लड़का जमीन पर गिरता है | उसका सर फुट जाता है उसका एक पैर टूट जाता है। मंजिल सामने है, पर अब वो चल नहीं सकता। रेंग रहा है पर ज्यादा रेंग नहीं सकता, वो चिल्लाता है रोता है पर कुछ कर नहीं पाता है। वो खुद के ठीक होने का अब इँतजार भी नहीं कर सकता। क्योंकि जिस रथ पर वो सवार था उसे बनाने के लिये उसके माता-पिता अपनी सारी कमाई खर्च कर चुके थे, सारे जमीने बेच चुके थे।
अब लड़के को मंजिल दुर होता प्रतीत होता है। दूर होते होते मंजिल गायब हो जाता है। लड़के को अपने माता पिता कि बाते याद आती है कि……
''अब लौटना तो जीत कर लौटना,अपनी मंजिल को पा कर लौटना।''

इतने में मुझे कुछ आहट सी होती  है, मेरी नींद खुलती है. मैं  शायद  सपनों मे खोया था , पर आँख खुलने तक मै बहुत रोया था। पर रोया क्योँ ? क्या उस लड़के को मैं पहचानता था मै ? कौन था वो कहीं मै ही तो नही था या आपमे से  कोइ एक था. मर चुका है मेरे सपनों मे वो पर अभी भी उसे ढूँढ  रहा हूँ मै.…………………। 


Thursday 9 April 2015

Is that okay with you?...


अभी बदला नही हूँ मैं....

मुश्किलें जरुर है मगर ठहरा नही हूँ मैं.
मंज़िल से जरा कह दो अभी पहुंचा नही हूँ मैं.

कदमो को बाँध न पाएंगी मुसीबत कि जंजीरें,
रास्तों से जरा कह दो अभी भटका नही हूँ मैं.

सब्र का बाँध टूटेगा तो फ़ना कर के रख दूंगा,
दुश्मन से जरा कह दो अभी गरजा नही हूँ मैं.

दिल में छुपा के रखी है लड़कपन कि चाहतें,
दोस्तों से जरा कह दो अभी बदला नही हूँ मैं.

साथ चलता है, दुआओ का काफिला,
किस्मत से जरा कह दो अभी तनहा नही हूँ मैं.


Wednesday 8 April 2015

जीवन होगा हर्ष भरा.....




सूरज है निस्तेज पड़ा
बादल इसके पास खड़ा,
अपने पथ पर बढ़ता सूरज
ना है कोई मद भरा.

दुःख हैं थोड़े बादल जैसे
छंट जायेंगे गम न कर,
अड़ियल बादल हट जाएंगे
दिन निकलेगा धूप भरा.

मत घबराना थोड़े दुःख से
जीवन होगा हर्ष भरा.