Friday 9 March 2012

मैं नारी




मैं नारी सदियों से
स्व अस्तित्व की खोज में
फिरती हूँ मारी-मारी
कोई न मुझको माने जन
सब ने समझा व्यक्तिगत धन
जनक के घर में कन्या धन
दान दे मुझको किया अर्पण
जब जन्मी मुझको समझा कर्ज़
दानी बन अपना निभाया फर्ज़
साथ में कुछ उपहार दिए
अपने सब कर्ज़ उतार दिए
सौंप दिया किसी को जीवन
कन्या से बन गई पत्नी धन
समझा जहां पैरों की दासी
अवांछित ज्यों कोई खाना बासी
जब चाहा मुझको अपनाया
मन न माना तो ठुकराया
मेरी चाहत को भुला दिया
कांटों की सेज़ पे सुला दिया
मार दी मेरी हर चाहत
हर क्षण ही होती रही आहत
माँ बनकर जब मैनें जाना
थोडा तो खुद को पहिचाना
फिर भी बन गई मैं मातृ धन
नहीं रहा कोई खुद का जीवन
चलती रही पर पथ अनजाना
बस गुमनामी में खो जाना
कभी आई थी सीता बनकर
पछताई मृगेच्छा कर कर
लांघी क्या इक सीमा मैने
हर युग में मिले मुझको ताने
राधा बनकर मैं ही रोई
भटकी वन वन खोई खोई
कभी पांचाली बनकर रोई
पतियों ने मर्यादा खोई
दांव पे मुझको लगा दिया
अपना छोटापन दिखा दिया
मैं रोती रही चिल्लाती रही
पतिव्रता स्वयं को बताती रही
भरी सभा में बैठे पांच पति
की गई मेरी ऐसी दुर्गति
नहीं किसी का पुरुषत्व जागा
बस मुझ पर ही कलंक लागा
फिर बन आई झांसी रानी
नारी से बन गई मर्दानी
अब गीत मेरे सब गाते हैं
किस्से लिख-लिख के सुनाते हैं
मैने तो उठा लिया बीडा
पर नहीं दिखी मेरी पीडा
न देखा मैनें स्व यौवन
विधवापन में खोया बचपन
न माँ बनी मै माँ बनकर
सोई कांटों की सेज़ जाकर
हर युग ने मुझको तरसाया
भावना ने मुझे मेरी बहकाया
कभी कटु कभी मैं बेचारी
हर युग में मै भटकी नारी

Tuesday 6 March 2012

ये खाली पन्ने


में नहीं जानता कि, में क्यों लिखता हूँ,
बस, ये खाली पन्ने यूँ देखे नहीं जाते,
इनसे ही अपना अकेलापन बाट लेता हूँ..

मेरे ख़यालो का आइना हैं ये,
मेरी अनकही बातें, मेरे अनसुने जज़्बात हैं ये..
इन पर जो स्याही है,
मेरे सपनो, मेरे छुपे आंसू, मेरे दर्द, मेरे प्यार कि हैं..

इन पर में पूरी तरह आज़ाद हूँ,
इन पर न कोई रोक है, न कोई टोक..

कभी भर देता हूँ इन्हे, दिए कि लौ से,
कभी बारिश कि बूंदो से,
कभी बचपन कि यादों से,
कभी उस हसींन कि तारीफों से..

ये पन्ने कुछ जवाब नहीं देते,
बस सुन लेते हैं मेरी बात,
क़ैद कर लेते हैं खुद में,
"मेरी दुनिया, मेरे जज़्बात"

किसी से कहते नहीं, किसी को बताते नहीं,
बस सम्भाल कर रखते हैं मेरी अमानत को,
मेरी कहानियों को, मेरी रवानियों को,
मेरी बातों को..

ये सही-गलत का भेद नहीं करते,
न अच्छे का, न बुरे का
इन पर न कुछ झूठ है, न सच..

कुछ यादें लेकर बिखर चुके हैं ये,
कुछ यादें अब भी संजोये हैं,
कुछ कहानिया और बाकी हैं मेरी,
जो इनमे मिल जाएँगी, और यादें बन जाएँगी..

कुछ किस्से और बाकी हैं मेरे,
जो मेरे जाने के बाद भी रहेंगे,
जो कभी खो जायेंगे, कभी मिल जायेंगे,
किसी को, कभी मेरी याद दिलाएंगे..

के था एक नादान लिखने वाला,
जो दुनियांदारी छोड़ कर,
इन पन्नों के प्यार में पढ़ गया..

इन्ही पन्नो में उसकी हमसफ़र कि बातें थी,
इन्ही पन्नो में उसके यारो के क़िस्से,
इन्ही पन्नो में वो आज़ाद रहा,
इन्ही पन्नो में वो क़ैद,
इन्ही पन्नो पर रोशन हुआ,
और फिर इन्ही पन्नो में डूब गया..

Sunday 4 March 2012

क्या हम सब ढ़ोंगी हैं ?


आजकल इस सोशियल मीडीया के दौर मे एक आम सहमति बनाना बहुत मुश्किल है. सभी की आपनी एक सोच है और होनी भी चाहिए. शायद यही एक लोकतांत्रिक देश मे रहने का फ़ायदा है, जिससे आज भी दुनिया के कई मुल्क बहुत दूर है.

YouTube के काफ़ी प्रचलित हो जाने के कारण से आज देश का हर दूसरा लड़का रात-तो-रात वाइरल होना चाहता है. सोशियल एक्सपेरिमेंट्स और सवाल जबाब संबंधित वीडियोस की झड़ी लग चुकी है.

सभी के आपने अलग इश्यूस है. कोई भारतीय संस्कृति से परेशन है, कोई महिलाओ के हित के लिए लड़ रहा है और कोई चाहता है की भारत युरोप एवं अमेरिका जैसी ओपन सोसाइटी बन जाए. ठीक है में ऐसा नही कह रहा की एक ओपन सोसाइटी होना ग़लत है पर असली सवाल तो यह है की क्या हम खुद तय्यार है? क्या हम उन सभी मापदंडो पर खरे उतर सकेंगे?

भारतीय YouTube चॅनेल्स पर पूछे गए कुछ सवाल और उनके दिया गये जवाब(बहुमत). साथ मे मेरी आपनी निजी राय और कुछ सवाल.

सवाल: क्या भारत मे वैश्यावृति को क़ानूनी तौर पर मंज़ूरी दे देनी चाहिए?

बहुमत: हां.. वैश्यावृति को क़ानूनी तौर पर मंज़ूरी देने से बलात्कार जैसे अपराधो मे कमी आएगी. जो भी डेस्परेट लोग है वो बलात्कार करने के बजाए वैश्याओ के पास जा कर अपनी हवस बुझा लेंगे. वैश्यावृति भी एक प्रोफेशन है, जैसे सभी को पैसे कमाने का हक़ है वैसे ही उनको भी पूरा हक़ है. ये वैसे भी हो ही रहा है, तो क्यू ना क़ानूनी तौर पर हो. I think its kind of progressive to have this in India since our country is developing.

मेरी राय: इसमे दो मत नहीं की सेक्स संबंधी अपराधो को रोकना हमारी प्राथमिकता है, पर क्या वैश्यावृति ही एक साधन है. To be a prostitute is nobodies childhood dream, circumstances make them. क्या किसी को आपने वैश्या होने पर गर्व हो सकता है? मेरे ख़याल से तो नही. बलात्कार वहाँ भी हो रहे है जहाँ वैश्यावृति की मंज़ूरी है. मेरी समझ मे इन अपराधो को रोकने का एक ही तरीका है और वो है क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त करना.

मेरा सवाल: चलो एक बार हम मान लेते है की इसे मंज़ूरी मिल जाती है. तो क्या अगर कभी आपका छोटा भाई या बेटा (बालिग) डेस्परेट हो गया तो क्या आप उसे एक वैश्या के पास जाने की इजाज़त दे देंगे. अगर आप को कहीं से यह पता लगा की आप का भाई या फिर बेटा अपनी संतुष्टि और डेस्परेशन कम करने के लिए ऐसा करता है तो क्या आप उसे तुरंत माफ़ कर देंगे? हर बलात्कारी किसी का भाई और किसी का बेटा होता है.