Sunday 16 February 2014

"इतना बड़ा बना दिया"

कभी पहली बार स्कूल जाने मे डर
लगता था...…
आज अकेले ही दुनिया घूम लेते है................
पहले 1st नंबर लाने के लिए पढ़ते थे,
आज कमाने के लिए पढ़ते है...
गरीब दूर तक चलता हे....…
खाना खाने के लिए…..
अमीर दूर तक चलता हे ...…
खाना पचाने के लिए …...
कीसी के पास खाने के लिये एक
वक्त की रोटी नहीं है …..
कीसी के पास रोटी खाने के लिए
वक़्त ही नहीं है …
कोई लाचार है इस लिए बीमार है,
कोई बीमार है इस लिये लाचार है....
कोई अपनों के लिए रोटी छोड
देता है, कोई रोटी के लिए
अपनों को छोड़ देता है
ये दुनीया भी कितनी निराली है..
कभी वक़्त मीले तो सोचना…...
कभी छोटी सी चोट लगने पे रोते थे,
आज दिल टूट जाने पर भी संभल जाते है..
पहले हम दोस्तों के सहारे रहते थे,
आज दोस्तों की यादो मे रहते है......
पहले लड़ना मारना रोज़ का काम था.............
आज एक बार लड़ते है तो रिश्ते
खो जाते है.........
सच में जिन्दगी ने बहुत कुछ
सिखा दिया, जाने कब हम
को इतना बड़ा बना दिया..............!!
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Saturday 15 February 2014

वन्दे मातरम्...


' वन्दे मातरम् ' देश-प्रेम का गीत है , प्रत्‍येक देश के राष्‍ट्रगीत में स्‍वाभिमान होता है, वस्तुतः राष्‍ट्रध्‍वज और राष्‍ट्रगीत ही ऐसी प्रेरणा होती है जिसके लिए सारी की सारी पीढियां अपना सर्वस्‍व न्‍यौछावर कर देती हैं। भारत में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारियों के अंतिम शब्‍द होते थे ‘वंदे मातरम्...!
'वन्दे मातरम्' गीत के पहले दो अनुच्छेद सन् 1876 ई० में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत भाषा में लिखे थे। इन दोनों अनुच्छेदों में किसी भी देवी -देवता की स्तुति नहीं है , इनमें केवल मातृ-भूमि की वन्दना है । सन् 1882 ई० में जब उन्होंने 'आनन्द- मठ' नामक उपन्यास बॉग्ला भाषा में लिखा तब इस गीत को उसमें सम्मिलित कर लिया तथा उस समय उपन्यास की आवश्यकता को समझते हुए उन्होंने इस गीत का विस्तार किया परन्तु बाद के सभी अनुच्छेद बॉग्ला भाषा में जोड़े गए। इन बाद के अनुच्छेदों में देवि दुर्गा की स्तुति है ।
सन् 1896 ई० में कांग्रेस के कलकत्ता ( अब कोलकता ) अधिवेशन में, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे संगीत के लय साथ गाया । श्री अरविंद ने इस गीत का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तथा आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू भाषा में अनुवाद किया है। तत्र दिनांक - 07 सितम्बर सन् 1905 ई० को कॉग्रेस के अधिवेशन में इसे 'राष्ट्रगीत ' का सम्मान व पद दिया गया तथा भारत की संविधान सभा ने इसे तत्र दिनांक- 24 जनवरी सन् 1950 ई० को स्वीकार कर लिया । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ) द्वारा दिए गए एक वक्तव्य में 'वन्दे मातरम्' के केवल पहले दो अनुच्छेदों को राष्टगीत की मान्यता दी गयी है क्योंकि इन दो अनुच्छेदों में किसी भी देवी - देवता की स्तुति नहीं है तथा यह देश के सम्मान में मान्य है ।
यह मधुर गीत विश्व का दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत है (बी बी सी ने अपनी 70वीं वर्षगांठ पर एक सर्वे कराया था जिसके परिणाम की घोषणा 21 दिसम्बर सन् 2002 ई० में की गयी थी)। आईये हम गगनभेदी आवाज़ में इसे पुनः गाकर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दें :--
वन्दे मातरम् !
सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,
शस्यश्यामलाम् मातरम् !
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !
वन्दे मातरम् ...!

"रिश्तों के बाज़ार"

कदम रुक गए जब पहुंचे हम रिश्तों के बाज़ार में...
बिक रहे थे रिश्ते खुले आम व्यापार में..
कांपते होठों से मैंने पुछा, "क्या भाव है भाई इन रिश्तों का?"
दूकानदार बोला: "कौनसा लोगे..? बेटे का.. या बाप का...? बहिन का...
या भाई का..?
बोलो कौनसा चाहिए..? इंसानियत का. या प्रेम का..?
माँ का.. या विश्वास का..?
बाबूजी कुछ तो बोलो कौनसा चाहिए.
चुपचाप खड़े हो कुछ बोलो तो सही...
मैंने डर कर पुछ लिया दोस्त का..?
दुकानदार नम आँखों से बोला: "संसार इसी रिश्ते पर ही तो टिका है..,
माफ़ करना बाबूजी ये रिश्ता बिकाऊ नहीं है..
इसका कोई मोल नहीं लगा पाओगे, और जिस दिन ये बिक जायेगा...
उस दिन ये संसार उजड़ जायेगा...
"सभी मित्रों को समर्पित..

"कभी - कभी ये ख्याल आता है "

मुझे कभी - कभी ये ख्याल आता है ,
की शायद कोई है जिसे मुझपर भी प्यार आता है,
मेरा हर ग़म उस को लगता है अपना,
और मेरी हर ख़ुशी पे उस को करार आता है,
फिर जाने क्यूँ वो कहने से डरती है,
ऐसा जाने क्या उस के मन में ख्याल आता है,
आँखों से अक्सर इकरार करती है,
क्यूँ होंठों पर हर बार इनकार आता है,
सोचता हूँ मैं ही कह दूं वो जो कह न सकी,
लेकिन फिर न सुन कर बिछरने का ख्याल आता है,
चलो अच्छा है हँसते हँसते ही हम चले जायेंगे,
की शायद कोई है जिसे मुझपर भी प्यार आता है ...

Friday 14 February 2014

निरंतर चलता हैं प्रेम...

नहीं रुकता प्रेम
कभी भी
नहीं …
कभी थमता भी नहीं
कि बिना संवाद के भी
जारी है
निरंतर संवाद !
मौन की भाषा
पढ़ती हैं आँखें
मौन के संवाद
बोलती हैं आँखें
और सुनता है ह्रदय
मौन की गूँज को
कि नहीं रुकता प्रेम
कभी भी
नहीं…
कभी थमता भी नहीं ….!