Saturday 15 February 2014

वन्दे मातरम्...


' वन्दे मातरम् ' देश-प्रेम का गीत है , प्रत्‍येक देश के राष्‍ट्रगीत में स्‍वाभिमान होता है, वस्तुतः राष्‍ट्रध्‍वज और राष्‍ट्रगीत ही ऐसी प्रेरणा होती है जिसके लिए सारी की सारी पीढियां अपना सर्वस्‍व न्‍यौछावर कर देती हैं। भारत में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारियों के अंतिम शब्‍द होते थे ‘वंदे मातरम्...!
'वन्दे मातरम्' गीत के पहले दो अनुच्छेद सन् 1876 ई० में बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने संस्कृत भाषा में लिखे थे। इन दोनों अनुच्छेदों में किसी भी देवी -देवता की स्तुति नहीं है , इनमें केवल मातृ-भूमि की वन्दना है । सन् 1882 ई० में जब उन्होंने 'आनन्द- मठ' नामक उपन्यास बॉग्ला भाषा में लिखा तब इस गीत को उसमें सम्मिलित कर लिया तथा उस समय उपन्यास की आवश्यकता को समझते हुए उन्होंने इस गीत का विस्तार किया परन्तु बाद के सभी अनुच्छेद बॉग्ला भाषा में जोड़े गए। इन बाद के अनुच्छेदों में देवि दुर्गा की स्तुति है ।
सन् 1896 ई० में कांग्रेस के कलकत्ता ( अब कोलकता ) अधिवेशन में, रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इसे संगीत के लय साथ गाया । श्री अरविंद ने इस गीत का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया तथा आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू भाषा में अनुवाद किया है। तत्र दिनांक - 07 सितम्बर सन् 1905 ई० को कॉग्रेस के अधिवेशन में इसे 'राष्ट्रगीत ' का सम्मान व पद दिया गया तथा भारत की संविधान सभा ने इसे तत्र दिनांक- 24 जनवरी सन् 1950 ई० को स्वीकार कर लिया । डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति ) द्वारा दिए गए एक वक्तव्य में 'वन्दे मातरम्' के केवल पहले दो अनुच्छेदों को राष्टगीत की मान्यता दी गयी है क्योंकि इन दो अनुच्छेदों में किसी भी देवी - देवता की स्तुति नहीं है तथा यह देश के सम्मान में मान्य है ।
यह मधुर गीत विश्व का दूसरा सबसे लोकप्रिय गीत है (बी बी सी ने अपनी 70वीं वर्षगांठ पर एक सर्वे कराया था जिसके परिणाम की घोषणा 21 दिसम्बर सन् 2002 ई० में की गयी थी)। आईये हम गगनभेदी आवाज़ में इसे पुनः गाकर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दें :--
वन्दे मातरम् !
सुजलाम् सुफलाम् मलयज-शीतलाम् ,
शस्यश्यामलाम् मातरम् !
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्
सुखदाम् वरदाम् मातरम् !
वन्दे मातरम् ...!

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