Wednesday 17 June 2015

बदलाव- एक कहानी

“हम शपथ लेते हैं कि हम पूर्ण पारदर्शिता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे और भ्रष्टाचार के समूल विनाश में अपना सम्पूर्ण सहयोग देंगे|” – इन शब्दों के साथ ही सतर्कता सप्ताह की प्रतिज्ञा समाप्त हुई और बड़े बड़े अधिकारी अपनी तशरीफ के साथ कमजोर कुर्सियों की बेहाल गद्दियों में धंस गए | इस प्रतिज्ञा की ध्वनि ने सभागार की खिडकियों की चूलें हिला दी थी, माहौल ऐसा गुंजायमान था कि लगता था, ऊपर से देवी-देवता पुष्पवर्षा ही करने वाले होंगे | ऐसी प्रतिज्ञा इससे पहले शायद उन्होंने स्वयं भीष्म पितामह के मुंह से ही सुनी होगी | खैर ! चाय की गर्म गर्म चुस्कियों के साथ चर्चा का विषय भी गरमाता गया | “पारदर्शी पचौरी”, “कर्तव्य परायण कपूर” और “ईमानदार ईरानीजी” ने बड़ा मन लगाकर वाद-विवाद किया | कार्यक्रम के सञ्चालक श्री “सत्यदर्शी सिंह” जी और उनके बड़े साहब श्री “सत्यान्वेषी शर्मा” जी, कार्यक्रम की भरपूर सफलता पर गदगद थे और अपने मानस पटल पर रिपोर्ट की रूप-रेखा भी तैयार कर चुके थे|
इसके साथ ही समारोह समाप्त हुआ|
“क्यों कपूर साहब? आज वो फाइल का काम कर दें ?- पचौरी जी ने पूछा |
“कौन सी ?”
“अरे वही! वो जो जिला अस्पताल के लिए जमीन खरीदनी है | पिछले कुछ दिन से कलक्टर साहब का कुछ ज्यादा ही प्रेशर आ रहा है | हमें भी तो उस फाइल को छुए अरसा बीत गया| अब तक तो उसके पन्ने भी ताम्रपत्र बन गए होंगे | पता नहीं मैंने कहाँ रख दी है, ढूंढना पड़ेगा|”
“अरे यार पारदर्शी! कुछ घर का जरूरी काम करना है| सोच रहा था, आज निपटा लेता पर तुम तो काम लेकर आ गये| ठीक है कार का बंदोबस्त कर लो तो अपना घर का काम भी मैं निपटा आऊँगा| मगर ये बताओ, ये फायदे का सौदा है कि नहीं?” कर्तव्य परायण कपूर जी ने रूचि जाग्रत कर के पूछा|
“अब वो तो इमानदार साहब ही बता पाएंगे, उन्हें ही तो करनी है ये डील फाइनल| उन्ही से ही पूछ लेते हैं| आवाज़ लगाओ उनको जरा|”
“ईमानदार साब, ईमानदार साब!”
“ आ रहा हूँ यार, तुम तो पूरे ऑफिस में धमाका करे देते हो, बताओ क्या बात है, पारदर्शी?”
“भाई साहब, मैं तो कर्तव्य परायण जी को वो डील की बात बता रहा था| कुछ प्रकाश डालिए|”
“सुनो जी, आप दोनों का सहयोग रहा तो इस जिले के लिए बहुत बड़ा अस्पताल बन सकता है, इसमें जनता का फायदा तो है ही और हम जनता के सेवकों को भी मेवा खाने का अवसर मिलेगा”- ईमानदार साहब के बोल फूटे|
कर्तव्य परायण जी का चेहरा गुलाबी हो उठा और उस गुलाब की चमक पारदर्शी जी की आँखों में भी दिखने लगी|
इन सब बातों को “अंतरात्मा आनंद” जी सुन रहे थे| वो “सत्यदर्शी” सिंह जी और उनके बड़े साहब श्री “सत्यान्वेषी” शर्मा जी के बड़े चहेते भी थे| “ये सही नहीं है”- अंतरात्मा ने आवाज़ दी|
तीनो लोग चौंक गए| पीछे मुड़कर देखा तो अंतरात्मा जी अपनी आवाज़ की पहुँच से प्रभावित हो स्वयं से बातें करने में लगे थे| तभी ये तीनो पास आ गए और ईमानदार जी बोले- “क्या गलत है? जरा विस्तार से बोलो|”
अंतरात्मा जी पहले थोडा सहमे पर खुद को सहेजकर बोले-“ यही कि आप जैसे प्रभावी, उच्च कद एवं क्षमता के अधिकारी ऐसा घिनोना कार्य करेंगे|” तब तक “नियमावली नरूला” जी भी आ गयीं, जो अंतरात्मा की बहुत पक्की सहेली थी| अंतरात्मा जी ने प्रवचन चालू रखे, “नियमावली” की उपस्थिति ने उन्हें काफी नैतिक सहारा दिया-“आप अपने परिवार के मुखिया हैं| क्या संस्कार दे पाएंगे आप अपने बच्चों को? जो आपको अपना आदर्श मान के चलते हैं| क्या मुंह दिखा पाएंगे, यदि आप पर कोई केस हो जाये? और फिर इन बेईमानी के पैसों से किसी का भला नहीं हुआ है|
“नियमों के प्रति भी जागरूकता लाने के कोशिश कीजिये साहब”- नियमावली नरूला स्वयं को रोक न पायीं|
“परमात्मा पाण्डेय”, इस कार्यालय के सर्वोच्च अधिकारी अपने सीसीटीवी कैमरे से ये सब देख रहे थे|
इन तीनों के चेहरे लटके हुए थे, पर किसी तरह साहस बटोरकर पारदर्शी पचौरी जी बोले- “पर ये तो सभी कर रहे हैं न? और हम कोई गरीबों को तो लूट नहीं रहे| वो जमीन का मालिक “धनवर्षा धवल” तो हमें स्वयं ही दे रहा है|”
अंतरात्मा बौखलाकर बोले- “हम किसी और के लालच को अपने स्वार्थ की ढाल नहीं बना सकते| आप अपने कर्तव्य का ईमानदारी एवं पारदर्शिता से निर्वहन कीजिये और निश्चय ही आप उस दुर्दांत दुर्घटना के दुष्परिणामों से बच जायेंगे जिसमे आप शायद स्वयं से भी आँखे नहीं मिला सकते|”
उनके इन शब्दों ने वाकई काफी अन्दर तक असर डाला| और उसी समय तीनों ने “अंतरात्मा” जी को “नियमावली” के सामने वचन दिया कि अपने कर्तव्यों का ईमानदारी एवं पारदर्शिता से निर्वहन करेंगे और किसी को शिकायत का मौका नहीं देंगे|
जब ये घटना सत्यदर्शी और सत्यान्वेषी जी को पता लगी तो इसकी सच्चाई को इन्होने जांचा और “परमात्मा पाण्डेय” जी को कहानी सुनाई जो सब कुछ पहले ही म्यूट सीसीटीवी पर देख चुके थे|

No comments:

Post a Comment