मैं थक गया हूँ न दे तू और ग़म नया मेरे हालात पे अब तो छोड़ दे मुझको
मैं अपने वहम में सुकून से जी लेता हूँ न तोड़ उनको अभी और जी लेने दे मुझको
रुसवाइयों का दौर कुछ रहा है बाक़ी ख़ाक बनकर सरेआम बिखरने दे मुझको
मैं तेरी नजरो में न फिर से कभी आऊंगा मेरे ख्यालों की दुनिया बसाने दे मुझको
तू अपनी दुनिया का नूर बनके यूं चमके दूर सहरा से नज़र आए आफ़ताब मुझको
साथ जितना भी दिया तूने बस वो ही काफी था अफसाना-ऐ-दर्द अब तो गुनगुनाने दे मुझको
No comments:
Post a Comment