Saturday 15 May 2010

मैं ग़रीब ही भला!


लगता है कि अब इस देश के बाशिंदों को ग़रीब बने रहने में ही भलाई है. जिधर देखो उधर ग़रीबों के लिए योजनाएँ. फलां योजना ग़रीबों के लिए ढिकां योजना ग़रीबों के लिए. सरकारी तो सरकारी, गैर सरकारी और एनजीओ सभी ग़रीबों के पीछे अपनी योजनाएं लेकर पिले पड़े रहते हैं. आप कोई योजना अमीरों के लिए, यदि कोई हो तो बता दो. अब ये बात जुदा है कि ग़रीबों की योजनाओं से भला अंततः अमीरों का ही होता है. मगर, फिर योजना भी तो कोई चीज होती है या नहीं. कोई भी योजना उठाकर देख लो. सरकार ग़रीबों को ग़रीब ही बने रहने देना चाहती है. ऊपर से ग़रीबों के लिए चुनावी साल तो बहुत ही बेकार साल होता है. वो ग़रीबों को और ज्यादा ग़रीब बनाने की फिराक में रहती है
कुछ समय पहले विशिष्ट पहचान पत्र यानी आधार कार्ड बनाने की कवायद की गई थी. इसके बारे में कहा गया था कि इसमें इतनी ताकत होगी कि यह अमीरों और ग़रीबों के बीच की खाई को पाट देगा. हम ग़रीबों के तो हाथ पाँव फूल गए थे उस समय. यदि हम ग़रीबों और अमीरों में कोई अंतर नहीं रहेगा, तो हमारी पूछ परख कौन करेगा? हमारे लिए योजनाएँ कैसे आएंगी? हमारे लिए योजनाएँ कौन बनाएगा? और, सबसे बड़ी बात, सरकार चुनावी साल में आखिर करेगी क्या और कौन सी योजना लाकर वो चुनाव जीतने के अपने मंसूबे पूरा करेगी? पर, शुक्र है, आधार कार्ड की मंशा पूरी होती दिखाई नहीं दे रही, उसका खुद का आधार खिसकता जा रहा है और हम ग़रीबों को अभी थोड़ी राहत है


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